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पाठ
लिंक
रदीफ़
शीर्षक
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प्ररूप
181
जनाबे फ़ातेमा ज़हरा के दफ़्न के मौक़े पर इमाम अली का खुत्बा
182
जब अदाए शुक्र में कोताही को क़बूल करते तो यह दुआ पढ़ते
183
जब अहले दुनिया को देखते तो राज़ी ब रिज़ा रहने के लिये यह दुआ पढ़ते
184
जब आप दुआ मांगते तो उसकी इब्तिदा ख़ुदाए बुज़ुर्ग व बरतर की हम्द व सताइश से फ़रमाते
185
जब आप पर कोई ज़्यादती होती या ज़ालिमों से कोई नागवार बात देखते तो यह दुआ पढ़ते थे
186
जब आफ़ियत तलब करते और उस पर शुक्र अदा करते तो यह दुआ पढ़ते की दुआ
187
जब किसी की ख़बरे मर्ग सुनते या मौत को याद करते तो यह दुआ पढ़ते
188
जब किसी बात से ग़मगीन या गुनाहों की वजह से परेषान होते तो यह दुआ पढ़ते
189
जब किसी बीमारी या कर्ब व अज़ीयत में मुब्तिला होते तो यह दुआ पढ़ते
190
जब कोई मुसीबत बरतरफ़ होती या कोई हाजत पूरी होती तो यह दुआ पढ़ते
191
जब कोई मुहिम या कोई मुसीबत नाज़िल होती या किसी क़िस्म की बेचैनी होती तो यह दुआ पढ़ते थे
192
जब ख़ुद या किसी को गुनाहों की रूसवाई में मुब्तिला देखते तो यह दुआ पढ़ते
193
जब गुनाहों से माफ़ी की तल्बी चाहते या अपने ऐबों से दरगुज़र की इल्तेजा करते तो यह दुआ पढ़ते
194
जब बादल और बिजली को देखते और कड़क कि आवाज़ सुनते तो यह दुआ पढ़ते
195
जवानों को इमाम अली (अ) की वसीयतें
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